दिल के बेहद करीब छोटे भाइयों ....हृदेश और पुष्पेन्द्र को समर्पित जिनोहने हाल में लिखने के लिए मुझे उकसाया
वक़्त से बढकर भी क्या कोई हो पाया है ,
रेत पकड़ने से भी हासिल क्या होगा ! !
दिल के दरवाजे पर तो पड़ा हुआ ताला है ,
रोज इबादत से भी हासिल क्या होगा ! !
दौलत की गठरी से भारी ये ज़मीर है ,
गद्दारी करने से हासिल क्या होगा ! !
इधर बेरुखी है तो उधर भी छाई खामोशी ,
ईमान बदलने से भी हासिल क्या होगा ! !
छोटा सा दिल है वो भी वीरान पडा है ,
दुनिया पा लेने से हासिल क्या होगा ! !
करीब खुदा के यही फकीरी तो लाई है ,
ग़ुरबत से लड़कर भी हासिल क्या होगा ! !
दुश्मन से भी ज्यादा खौफ़ सताता जिसका ,
ऐसी यारी से भी हासिल क्या होगा ! !
वक़्त की बेरहमी ने असर दिखाया है ,
अब नीम हकीमों से भी हासिल क्या होगा ! !
रोज़ टूटते हैं हर पल आंसू देते हैं ,
ख्वाब संजोने से भी हासिल क्या होगा ! !
अपने कर्मों से छुटकारा नामुमकिन है ,
छुरा घोंपने से भी हासिल क्या होगा ! !
अपने साए से भी कब पीछा छूटा है ,
रिश्ते ठुकराने से हासिल क्या होगा ! !
वक़्त से पहले नहीं यहाँ कुछ भी मिलता है ,
पैर पटकने से भी हासिल क्या होगा ! !
जिधर भी जाऊं एक खौफ़ सा छा जाता है ,
ऐसी शोहरत से भी हासिल क्या होगा ! !
सिक्कों जैसी चमक बसी उनकी आँखों में ,
दीवानेपन से भी हासिल क्या होगा ! !
आँचल में न दूध बचा है आँखों में न पानी ,
ऐसी औरत से भी हासिल क्या होगा ! !
हालात बदलने की ताकत लो अपने हाथों में ,
नेताओं की मजलिश से हासिल क्या होगा ! !
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उफ्फ्फ...........आप भी ब्लॉग की दुनिया में उतर आये......देर से ही सही मगर स्वागत है.......!
ReplyDeleteचश्मेबद्दूर, इब्तिदा जब इतनी बेहतरीन है तो आगे का सफ़र यकीनना और भी बेहतरीन होगा.......
पहली और दूसरी दोनों पोस्ट दिल से लिखी गयीं है............बहुत सुन्दर......!
कभी कभी व्याकरण.......भावनाओं के दायरे में ऐसा बंधता है कि रदीफ़-काफिया-चाँद-कविनता-नवकविता के बंधन टूट जाते हैं रचना बस रचना रह जाती है............हज़रात बस ऐसा ही कुछ आपकी रचनाओं के साथ हुआ है........आगे पोस्ट का बेसब्री से इन्तिज़ार रहेगा......! रचनाओं में लेखक मन की बेचैनी साफ़ दिख रही है........!
जावेद साहब की यह पंक्तियाँ आपकी रचना को पढ़ कर मुसलसल जेहन में आ गयी.....
हर ख़ुशी में कोई कमी-सी है
हँसती आँखों में भी नमी-सी है
दिन भी चुप चाप सर झुकाये था
रात की नब्ज़ भी थमी-सी है
किसको समझायें किसकी बात नहीं
ज़हन और दिल में फिर ठनी-सी है
उफ्फ्फ...........आप भी ब्लॉग की दुनिया में उतर आये......देर से ही सही मगर स्वागत है.......!
ReplyDeleteचश्मेबद्दूर, इब्तिदा जब इतनी बेहतरीन है तो आगे का सफ़र यकीनन और भी बेहतरीन होगा.......
पहली और दूसरी दोनों पोस्ट दिल से लिखी गयीं है............बहुत सुन्दर......!
कभी कभी व्याकरण, भावनाओं के दायरे में ऐसा बंधता है कि रदीफ़-काफिया-कविता-नव कविता के बंधन टूट जाते हैं रचना बस 'रचना' रह जाती है............हज़रात बस ऐसा ही कुछ आपकी रचनाओं के साथ हुआ है........आगे पोस्ट का बेसब्री से इन्तिज़ार रहेगा......! रचनाओं में लेखक मन की बेचैनी साफ़ दिख रही है........!
जावेद साहब की यह पंक्तियाँ आपकी रचना को पढ़ कर मुसलसल जेहन में आ गयी.....
हर ख़ुशी में कोई कमी-सी है
हँसती आँखों में भी नमी-सी है
दिन भी चुप चाप सर झुकाये था
रात की नब्ज़ भी थमी-सी है
किसको समझायें किसकी बात नहीं
ज़हन और दिल में फिर ठनी-सी है
मज़ा अगया रचना देर से पढने के लिए मांफी चाहूँगा |
ReplyDeleteबहुत बहुत खूब ...........................
लाजबाब रचना हर एक बात में ज्ञान छुपा है |
दुश्मन से भी ज्यादा खौफ़ सताता जिसका ,
ऐसी यारी से भी हासिल क्या होगा ! !
.....................बिलकुल सत्य वचन
आँचल में न दूध बचा है आँखों में न पानी ,
ऐसी औरत से भी हासिल क्या होगा ! !
वाह सिंह साहब जबाब नहीं आपका
बहुत बहुत आभार