Sunday, May 2, 2010

एक युग पुरुष ..... मर्यादा पुरषोत्तम अवतार



!! सुह्रंम्त्र र्युदासिं मध्यस्थ द्वेशास्य बन्धुषु !!
!! साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धि र्विशिस्यते ! !


'' गीता'' में श्री कृष्ण योग युक्त महापुरुष को परिभाषित करते हैं... कि जो समस्त जीवों में समान दृष्टि रखता है ...... मित्र , बैरी , धर्मात्मा , पापी .... सभी जिसके लिए समान हैं .. क्योंकि वह इनके स्थूल कार्यों मात्र पर दृष्टि न डालकर इनके अन्दर की आत्मा में झांकता है ...और मात्र इतना अंतर देखता है कि... आध्यात्मिक निर्माण और ह्रदय की निर्मलता ... की सीढ़ी पर कोई थोडा ऊपर है ... कोई थोडा नीचे ...परन्तु क्षमता सब में है .. अतः संपूर्ण सृष्टि में कोई भी अस्पृश्य नहीं है ......योग युक्त महापुरुष की ऐसी अदभुत व्याख्या के साकार अवतार हैं ...... हमारे अग्रज .. बड़े भैया ... मार्गदर्शक...प्रथम सदगुरू .... संरक्षक ...... श्री पवन कुमार ! !


ईश्वर की कैसी महान कृपा है की मुझ जैसे नितांत साधारण .. तुच्छ व्यक्ति को ऐसे अवतारी ... अदभुत योगी पुरुष का अनुज बनने का गौरव दिया.... भैया के विषय में कितना भी वर्णन करू...उनकी शख्शियत को शब्दों में उकेर पाना संभव नहीं है... उन्हें हम सभी महसूस करते हैं..उस सुख का अनुभव करते हैं जो उनके सानिध्य और संरक्षण में हमे प्रति पल मिलता रहता है ! अपने बचपन से ही वे मैंने उनका कवच धारण कर लिया जिसने सदैव मेरी रक्षा की .... मुझे जीवन दिया.... उनके स्नेह और कृपा का कितना वर्णन करूं ..... माँ ने अगर सांसे दी तो भैया ने धड़कने दी .... मेरा जीवन भैया के स्नेह और संरक्षण का परिणाम है .... अनंत काल तक अपने शरीर के एक - एक कतरे.... एक - एक बूँद से उनके चरण धोते रहने के बाद भी मैं उनका ऋणी बना रहूँगा .... बना रहना चाहता भी हूँ .... बड़ा असीम आनंद है इस ऋण में .... कैसे चुकाऊँ और क्यूँ चुकाऊँ ...!

इस धरती पर रहते हुए भी वे इसके प्रदूषण से मुक्त हैं ... वे सच्चे कर्मयोगी हैं और परिवार में सभी के हितैषी... प्रिय... और सम्मान के पात्र .... घर का एक - एक सदस्य उन पर जान छिड़कता है....भैया भी परिवार के सभी सदस्यों का बेहद ख्याल रखते हैं .... वे एक बेहतरीन पुत्र ... एक महान भाई.... एक शानदार पति ... एक श्रेष्ठ पिता और इससे भी बढकर एक सच्चे ... न्यायपसंद... हमदर्द इंसान हैं....!


एक योगी से एक शिष्य ने पूछा कि पृथ्वी पर सर्वश्रेष्ठ मनुष्य कौन है..? योगी ने कहा - वह मनुष्य जिसने कभी किसी का दिल न दुखाया हो...... भैया इस पृथ्वी के ऐसे ही महापुरुष हैं ... मैं यह दावा कर सकता हूँ .... घोषणा कर सकता हूँ कि भैया ने आज तक किसी का दिल नहीं दुखाया..... कैसी महान घटना है आज के इस बनावटी ...मिथ्याचारी ... स्वार्थी ... अहंकारी समाज में कोई मनुष्य आदर्श.. मर्यादा ... मनुष्यता...सच्चाई के ऐसे प्रतिमान भी गड़ सकता है......... हम छोटे भाई आश्चर्य से उनके ऊँचे मापदंडों...उपलब्धियों... आदर्शों को निहारते रहते हैं ...... हमारे लिए तो वे ही आदर्श हैं...उनके आभामंडल से सिंह सदन कुटुंब रोशन है..... उनकी विशाल , सरमायेदार शख्सियत के तले हम सुकून के साथ जी पा रहे हैं .......!


भैया ही हमारे वास्तविक गुरु हैं ... जहाँ एक ओर वे अत्याधुनिक तकनीकों , प्रशासन , वित्त्व्यवस्था , विज्ञानं के ज्ञाता हैं वहीँ दूसरी ओर धर्मं शास्त्र , दर्शन , साहित्य , संगीत , लेखन में विलक्षण प्रवीणता प्राप्त हैं ... भौतिक उपलब्धियों का अहंकार उनके निर्दोष , निर्मल अन्तः करण को लेश मात्र भी छु न सका है..... वे मानो बोध प्राप्त हैं ..वे निश्चय ही संपूर्ण स्मृतिवान हैं.. उन्हें जीवन के संपूर्ण सत्य उदघटित हो चुके हैं ... वे संपूर्ण कर्मयोगी हैं ... वे कुछ भी हासिल कर सकते हैं और उसमे किंचित मात्र लिप्त भी नहीं होते ....... मुझे तो वे इश्वर का अंश लगते हैं .... उन्हें भूत , वर्तमान , भविष्य सभी का ज्ञान है ....... मैं हर पल उनका स्मरण करता रहता हूँ और सोचता भी हूँ कि उन्होंने मेरी कितनी ही गलतिओं को क्षमा किया है ....... हर मुश्किल में मैं उन्हें अपने ठीक पीछे खड़ा पाता हूँ .... मैंने न जाने उन्हें कितने दर्द दिए होंगे ... पर उन्होंने मेरी आँख से एक आंसू न गिरने दिया है.......

परिवार के संघर्ष के कठोर दिनों में भी वे वैसे ही निर्मल ह्रदय और प्रसन्न चित्त रहते थे ...... कठिन परिस्थितिओं में भी वे मुझे सदैव निर्विकार ही दिखे.... विष का उत्तर वे सदैव अमृत से ही देते रहे ...कभी किसी का अहित नहीं सोचा...कभी किसी का अपमान नहीं किया ....कभी किसी का दिल नहीं दुखाया.... बहुत कुछ सहा और किसी से न कोई शिकायत की न कोई बात गाँठ बाँधी .... बस क्षमा , स्नेह , सहकार की वर्षा ही करते रहे...... और क्या - क्या वर्णन करूं... वे वास्तव में वर्णनातीत हैं .... मैं सच्चे ह्रदय से समस्त अनुजों की ओर से अश्रुपूरित नेत्रों के साथ उनको चरणों में शत -शत नमन करता हूँ ...... ईश्वर के दर्शन तो नहीं हुए ... या हुए भैया के रूप में .....उनके साथ हम वास्तव में श्रेष्ठता .. नैतिकता.... मर्यादा और संस्कारों के दुर्लभ युग को जी रहे हैं .....अपने जीवन काल में ही मर्यादा पुरषोत्तम स्वरुप के साथ जीने का अवसर देने के लिए परमपिता परमेश्वर को कोटि - कोटि धन्यवाद देता हूँ ! !


ब्लॉग पर इस विषय पर एक महत्त्वपूर्ण आलेख भी है जो महफूज अली द्वारा लिखा गया है शीर्षक है "जज़्बा ग़र दिल में हो तो हर मुश्किल आसाँ हो जाती है... मिलिए हिंदुस्तान के एक उभरते हुए ग़ज़लकार से "( क्लिक करें)

***** PANKAJ K. SINGH

Friday, April 16, 2010

नौकरशाही की चाल और चरित्र बदलना आवश्यक ........

प्रशासन के समक्ष विकास व जनकल्याण को गति देने की चुनौती


उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने प्रदेश के प्रशासनिक अधिकारियों के सम्मेलन में नौकरशाही को कल्याणकारी प्रशासन की महान परम्पराओं को याद दिलाकर अच्छा ही किया है | वैसे यह चिंता का विषय है कि प्रदेश के मुखिया को अपने प्रशासनिक तंत्र को यह बहुत ही बुनियादी सबक देने की नौबत आन पड़ी है | इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि आज पूरे देश में सामाजिक और नैतिक मूल्यों में गिरावट स्पष्ट रूप से दिखाई पढ़ रही है | हमने बेहतर आर्थिक प्रगति की है, नई-नई संस्थाओं का न केवल विकास किया है वरन उन्हें काफी हद तक सुगंठित स्वरुप भी प्रदान कर दिया है | तथापि मूल्यों और परम्पराओं को पुष्ट करने के मामले में हम बहुत कमजोर और भटके हुए साबित हुए हैं | लगभग हर राजनीतिक और प्रशासनिक संस्था में मूल्यों का क्षरण हुआ है और ये संस्थाएं संविधान में अंतर्निहित उद्देश्यों से बहुत ज्यादा भटक गई हैं | यह त्रासदी ही है कि अधिकांश लक्ष्य तकनीकी रूप से पाने कि ज्यादा चेष्टा की जा रही है |

इन प्रयासों से कागजों और आंकड़ों पर प्रदर्शन तो सुधरा हुआ दिख रहा है परन्तु समाज में शांति और सौहार्द का वातावरण कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा है | हर तरफ भय, आशंका, तनाव संघर्ष और भविष्य के प्रति गहरी चिंता दिखाई पड़ रही है, एक औसत नागरिक को छोटे- छोटे बुनियादी कामों के लिए वर्षों तक नाक रगडनी पड़ जाती है | युवाओं को उनकी प्रतिभा और शक्ति के अनुसार रोजगार नहीं मिल पा रहा है | शिक्षा महगी और जिन्दगी बहुत सस्ती होती जा रही है | महंगी और तकनीकी शिक्षा के बाद बीई युवा वर्ग अपने भविष्य और कैरियर को लेकर बहुत ज्यादार आशंकित हैं | इन हालातों से उभरने के लिए बहुत सघन प्रयासों कि आवश्यकता है | परन्तु दुर्भाग्यवश सत्ता और प्रशासन के शीर्ष पदों पर जो लोग बैठे हुए हैं और जिनकी ओर औसत नागरिक बेहतर निर्णयों और घनीभूत क्रियान्वयन के लिए निहार रहा है उनका सारा समय अपनी- अपनी कुर्सिया बचाने, अपने को लाभ पहुचाने और खुद के लिए और अच्छा पद प्राप्त करने हेतु प्रयासों में ही व्यतीत हो रहा है |

राजनीतिक अस्थिरता के दौर में आज विकास और कल्याण की साड़ी जिम्मेदारी प्रशासन तंत्र के कन्धों पर ही है | नौकरशाही के सामने यह दायित्व है की वह अपने नकारात्मक सवरूप को त्याग दे और विकास और जनकल्याण के कार्यों के लिए प्रतिबद्द हो जाया जाये | नौकरशाही सदियों से आलोचनाओं के घेरे में रही है | सर्वप्रथम अट्ठारहवीं शताब्दी के मध्य में फ्रांसीसी विचारक दी गोर्ने ने नौकरशाही शब्द का प्रयोग किया था | उन्होंने इस शब्द का प्रयोग शिकायत के रूप में किया था और इसे (ब्यूरोमीनियाँ) फ्रांस के लिए एक भयंकर रोग बताया था नौकरशाही की आधुनिक अवधारणा का प्रस्तुतिकरण मुख्यत: संरचनात्मक तथा कार्यरामक दो द्रष्टियों से किया गया है | मैक्स वेबर ने औद्योगिक क्रांति के प्रारंभिक दिनों में प्रबंध प्रणाली में व्याप्त दास्ताँ, भाई भतीजावाद, शोषण और मनमानेपन के विरूद्ध आदर्श किस्म की नौकरशाही माडल का विकास किया था | वेबर ने नौकरशाही को प्रशासन की तर्कपूर्ण व्यवस्था माना गया है | समाजशास्त्रियों प्रशासनिक चिंतकों ने वेबर की नौकरशाही की बहुत तीखी आलोचना की है | इनका मानना है की नौकरशाही में कुछ भी आदर्श नहीं है |

मार्क्स की मान्यता थी कि नौकरशाही का उदय १६वी शताब्दी के आस- पास तब हुआ जब धन और सत्ता व्यापारी, पूजीपतियों और राजाओं के हांथों में केन्द्रित हो गयी | इसके प्रबंध के लिए नौकरशाही तंत्र की स्थापना की गयी | मार्क्स ने नौकरशाही के चार रूपों अभिवावक, जातीय, संरक्षक और योग्यता नौकरशाही की चर्चा की थी | जातीय नौकरशाही को कुलीनतंत्र तथा संरक्षक नौर्काशाही को लूट पद्वति तथा प्रतिबद्ध नौकरशाही की संज्ञा दी गयी | योग्यता नौकरशाही सभी सभ्य देशों में प्रचलित पद्वति है | इसमें योग्यता आधारित भर्ती होती है |

भारत में उपनिवेश कालीन ब्रिटिश राज में नौकरशाही ही सर्वेसर्वा थी | इसी दौर में देश में नौकरशाही का प्रभुत्व स्थापित हो गया था | आई सी एस अफसरों की ऐसी प्रतिवध श्रंखला विकसित की गयी जिन्होंने शक्ति के बल पैर नियोक्ता के हितों की पूर्ती की | स्वतंत्रता के बाद निश्चय ही इस स्वरुप में बदलाव आना चाहिए था | क्योंकि अब नौकरशाही को ब्रिटिश हितों की नहीं संवैधानिक मूल्यों और लोककल्याण की रक्षा करनी थी | दुर्भाग्यवश ऐसा हुआ नहीं |स्वतंत्रता के पांच दशक से ज्यादा समय के बीत जाने के बाद भी नौकरशाही अंग्रेजी काल के चरित्र और काल से उबर नहीं पाई है | इसमें उसी स्तर का भ्रष्टाचार व्याप्त है | अपने राजनीतिक आकाओं की जी हुजूरी की प्रवत्ति चरम पर है | प्रशासकों ने राजनीतिक गतिविधियों में स्वमं को बहुत अधिक उलझा लिया है और सेवानिवृत के बाद राजनीति में प्रवेश क्र जाने वाले प्रशासकों की संख्या में भरी बढ़ोत्तरी हुई है |

विकास कार्यों को गति देने के इस दौर में भी प्रशासन में लाल फीताशाही बहुत अधिक हैं | समय पर और तार्किक निर्णय न ले पाने की वजह से विकास एवं कल्याण प्रशासन की अवधारणा को गहरी क्षति पहुँच रही है | भारत की नौकरशाही में एक झूठा अहम आज भी समाया हुआ है की वे जनता के स्वामी हैं तथा योग्यता और ज्ञान स्तर पर समाज में सर्वश्रेष्ठ हैं | नौकरशाही में मलाईदार पदों की एक नई अवधारणा विकसित हुई है | जो बताता है कि जनता की सेवा का उद्देश्य उनके एजेंडे में कहीं नहीं है | नौकरशाही का अधिकांश समय अच्छे से अच्छे पदों को प्राप्त करने के लिए जोड़- तोड़ में ही जा रहा है |


ऐसे प्रशासकों की संख्या आज बहुत कम रह गयी है जो ग्रामीण अंचलों और पिछड़े इलाकों में विकास कार्यों को गति देने के लिए रुचि पूर्वक जाना चाहते हों | बाड़े शहरों में तैनातियौं और सुविधाओं के लिए प्रशासकों में कड़ी स्पर्धा चल रही है | जिलों व् तहसीलों में तैनात होने वाले अधिकारी तैनाती स्थल पर रहने के बजाय शहर में रहते हैं | अधिकारियों के निवास स्थानों को जनता से बहुत दूर बनाया जाना आज भी अंग्रेजी काल की परिपाटी को कायम रखने जैसा है | लोकसेवा में आने के बाद भी जनता से दूरी बनाए रखने की भारतीय नौकरशाही प्रवत्ति अनूठी है |

वास्तव में तेजी से बदलते आर्थिक और तकनीकी युग में नौकरशाही के इस घिसे पिटे तंत्र को और अधिक बर्दास्त कर पाना संभव नहीं हो सकेगा | इससे विकास योजनाओं को तेजी से नुकसान पहुँच रहा है और कार्यकुशलता इमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के उच्च मानकों में जंग लगती जा रही है | एक रूढीवादी और अहंकारी नौकरशाही के साथ भारत को विकसित राष्ट्र का दर्जा दिला पाना नामुमकिन ही है | भारतीय प्रशासन में हम इतने दशकों बाद भी विशेषज्ञों, तकनीशियनों और वैज्ञानिकों को सम्मानजनक स्थान प्रदान नहीं कर सके हैं | यही सबसे बड़ी और घटक विफलता है | सामान्यज्ञ अधिकारी (आईएएस) सभी महत्वपूर्ण एवं विशेषज्ञ प्रकृति के विभागों को डकारते जा रहे है | विशेषज्ञों की योजनाओं और त्वरित निर्णयों वाले स्थानों पर सामान्यज्ञ अधिकारी अडंगा लगाने वाले ही साबित हुए हैं | सचिवालय तंत्र नीति निर्देशन के स्तर पर बहुत प्रभावी सिद्ध नहीं हो पा रहा है | व्यवास्था में शक्ति प्रदर्शन की अतिशय स्पर्धा और अहम भाव के चलते अच्छे और त्वरित निर्णय हो ही नहीं पा रहे हैं | हमारा प्रशासक वर्ग एक नयी जाती एवं अभिजात्य वर्ग के रूप में उभरा है और यही प्रवत्ति चिंताजनक है | आज लोक सेवाएँ कानून की प्रतीक और संरक्षक से अधिक कानून की मालिक बन गई हैं | स्वतंत्रता के बाद भारत में नौकरशाही ने अपनी शक्तियों को अक्षुण बनाए रखने के लिए बहुत अनैतिक समझौते किये हैं | वोहरा कमेटी की रिपोर्ट ने इस बात पर चिंता प्रकट की थी की अपराधियों और माफिया तत्वों को सामानांतर सरकार चलाने में नौकरशाही मूक समर्थन प्रदान कर रही है |

नौकरशाही ने विगत पचास वर्षों में अपना आकार जितना व्यापक किया है उस मात्रा में उसने न तो अपनी उपादेयता सिद्ध की है और न ही बहुत तीब्र गति से विकासोन्मुखी एवं कल्याणकारी कार्य किये हैं | 'पाकिर्सन नियम' कि नौकरशाही का आकार बढने से कार्य की मात्रा कम होती है, भारत में एक सच्चाई है | आज विश्व में यह स्वीकार किया जाने लगा कि नौकरशाही बिलकुल गुजरे ज़माने कि व्यवस्था है और आज के बदलते विश्व में यह बिलकुल अनावश्यक है | किसी भी व्यस्था में जब तक वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, चिकित्सको, पेशेवरों लोगों और विशेषज्ञों को सम्मान और नीति निर्णयन के अधिकार नहीं मिलते तब तक विकास की बात बेमानी ही है | भारत में लोक सेवाओं के प्रति अभिभावकों और युवा होती पीढी का जितना तीब्र रूझान है वह विशेषज्ञ सेवाओं की ओर नहीं है | इससे देश में विशेषज्ञों का मनोबल गिरा है और उनकी प्रतिभा, मेधा और कार्यकुशलता का देश को समुचित लाभ प्राप्त नहीं हो पाया है | नौकरशाही वस्तुत: एक सेवक के रूप में बहुत उपयोगी है | परन्तु एक स्वामी के रूप में अत्यंत घटक | नौकरशाही पर सकारात्मक नियंत्रण रखने एवं उसको प्रगतिशील दिशा देने के लिए राजनीतिक तंत्र को सक्षम, योग्य एवं प्रगतिशील गोना पड़ेगा | आज राजनीतिक कार्यपालिका योग्यता एवं प्रशासनिक ज्ञान के आभाव के कारण नौकरशाही पर बहुत अधिक आश्रित है | एक लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए यह स्थित बहुत घातक है | इससे सत्ता की वास्तविक लगाम नौकरशाही के हाँथ में आ जाती है और वह अनुदारवादी तथा अनुत्तरदायी बनती चली जाती है | राजनीति में इसीलिए विद्वानों विशेषज्ञों एवं मेधावी जनों की आवश्यकता आज बहतु बाद गई है |


नौकरशाही को प्रतिबद्ध बनाने की आवश्यकता है | यह प्रतिबद्धता जनकल्याण एवं विकास योजनाओं तथा सम्वैधानिक मूल्यों के प्रति होनी चाहिए | स्वतंत्रता के पचास वर्ष से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी हम नौकरशाही को क्योँ उत्तरदायी, जवाबदेह और लक्ष्योंमुख नहीं बना पाए | इस पर गहन चिन्तन और व्यापक विमर्श की आवश्यकता है | देश के महामहीम राष्ट्रपति ए.पी.जे.अब्दुल कलाम से लेकर लगभग सभी शीर्ष राजनेता, विद्वान और देश को विकसित राष्ट्र का दर्जा दिलाने को प्रयासरत एवं उत्सुक नागरिक देश की नौकरशाही की दिशा और दशा से बेहद चिंतित हैं, परन्तु मात्र चिंता व्यक्त करने के रिवाज़ से बाहर निकलकर इस दिशा में वाकई ठोस प्रयास करने होंगे, नौकरशाही को आत्मावलोकन करना होगा की उसने संविधान और समाज के प्रति अपने सरोकारों के साथ न्याय क्योँ नहीं किया.......

* * * * * PANKAJ K. SINGH

Monday, April 5, 2010

नाज है जिन पर सिने जगत को.......................!



गुरुदत्त का नाम जेहन में आते ही एक ऐसे फ़िल्मकार एवं नायब शख्स की तस्वीर उभरती है जिसने वक्त से बहुत आगे जाकर काम किया | गुरुदत्त ने हिंदी सिनेमा को जो फ़िल्में दी हैं विषय वास्तु, तकनीकी, सम्पादन और संगीत एवं अभिनय सभी स्तरों पर वस्तुत: वे अनमाले व् अविस्मरणीय रचनाये हैं | ९ जुलाई १९२५ को मंगलौर में जन्में गुरुदत्त का व्यक्तित्व पर समन्वित संस्कृति का प्रभाव पड़ा |

बंगाली जीवन और बंगाली सिनेमा का प्रभाव उनके पूरे कैरियर पर साफ़ दिखाई पड़ता है | यह प्रभाव इतना व्यापक रहा की अनेको सिने प्रेमी उन्हें हमेशा बंगाली ही मानते रहे | प्रारंभ से ही उन पर बांगला फिल्मों का माहान निर्देशक अभिनय चक्रवर्ती, ज्ञान मुखर्जी, ए बनर्जी का पूरा प्रभाव रहा | वैसे गुरुदत्त का कला के क्षेत्र में पदार्पण नृत्य का क्षेत्र से हुआ था उन्होंने अंतरास्ट्रीय ख्याति प्राप्त नर्तक उदय शंकर की कला अकादमी अल्मोड़ा में प्रवेश लेकर भारतीय नृत्य का दो वर्षों तक प्रशिक्षण लिया | फिल्मजगत में उनका प्रवेश पूना देवानंद और रहमान जैसे कठोर दिनों के साथियों से हुआ | देव साहब और गुरुदत्त के संघर्ष के वादों और उनके शानदार सफ़र के बारे में मीडिया में बहुत कुछ लिखा और कहा जा चुका है | देवानंद की पहली फिल्म 'हम एक हैं' में वे कोरियोग्राफर थे 'लखरानी में गुरुदत्त ने एक छोटा सा रोल भी किया था परन्तु गुरुदत्त की काबिलियत को सही ब्रेक दिया देवानंद के नवकेतन बैनर ने १९५१ में गुरुदत्त के निर्देशन में 'बाजी' ने हिंदी सिनेमा को कई नायाब प्रतिभाये दे दी | फिल्म बाजी से देवानंद गुरुदत्त की जोड़ी ने महत्वाकांक्षी कर बिगडैल युवक की जो छबि प्रस्तुत की वह पूरे देश में युवाओं के लिए बड़ा क्रेज साबित हुई | जाल १९५२ बाज १९५३ आर पार १९५४, मिस्टर एंड मिसेज ५५, १९५५ जैसी बेहतरीन एवं कामयाब फिल्मों ने गुरुदत्त को बहुत ऊँचे मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया | इन पाँचों फिल्मों में गुरुदत्त नि दिखाया की फिल्म निर्माण के हर पहलू पर उनकी पकड़ कितनी मजबूत और चिंतन बहुत दूरदर्शी है और ज्यादा खुलकर काम करने के लिए वे निर्माण के क्षेत्र में उतरे | उनकी प्रोडक्शन कम्पनी की पहली फिल्म १९५६ में रिलीज हुई और फिल्म सी आई डी ने पूरे देश में हचल मचा दी | यह फिल्म आज भी सार्वकालिक श्रेष्ठतम सस्पेंस एवं थ्रिलर फिल्मों में सुमार की जाती है | १०५६ में उन्होंने 'सैलाब' निर्देशन किया |

१९५७ में गुरुदत्त की अमर कृति प्यासा आई यह फिल्म हिंदी सिनेमा की कुछेक सबसे संवेदनशील कृतियों में शामिल होती है | प्यार और प्रतिष्ठा की तलाश में भटकते एक शायर की कहानी प्यासा ने गुरुदत्त को निर्देशन और अभिनय के शिखर पर लाकर खड़ा कर दिया | यही नहीं १९५९ में 'कागज के फूल' ने तो जैसे उन्हें जीते जी एक किवदंती बना दिया | वे महानतम घोषित कर दिए गए | समीक्षक और सिनेप्रेमी उनकी प्रयोगधर्मिता सैवेदना और प्रतिभा से सम्मोहित होकर रह गए | कागज के फूल व्यवसायिक रूप से भले सफलता प्राप्त न कर सकी परन्तु इसे आज तक उत्क्रष्ट फिल्म निर्देशन का मानक माना जाता है |

उनकी फिल्मों में चौदहवीं का चाँद, साहब बीबी और गुलाम को भी भारी सफलता मिली | साहब बीबी और गुलाम में १९वी शताब्दी के बाद जमीदारी प्रथा में होते बदलावों के मध्य उच्च वर्गीय बंगाली जमींदार परिवार के अन्तर्विरोध के मध्य सामाजिक मान्यताओं और ताने बाने को बड़े ही साहसिक ढंग से प्रस्तुत किया | यह पूरी कहानी फ्लैश बैक में चलती रही सौतेला भाई १९६२, बहुरानी १९६३, भरोसा १९६३, साँझ और सवेरा १९६४, और सुहागन १९६४, गुरुदत्त अभिनीत फिल्में रही हैं | यह सभी फ़िल्में बेहद संवेदनशील विषयों पर केन्द्रित रही है | और मानवीय सरोंकारो तथा सामाजिक विसंगतियों को उकेरने में सफल रहीं गुरुदत्त की प्रोड्क्शन कम्पनी की अंतिम फिल्म बहारें फिर भी आएँगी, १९६६ में आयी यह एक बेहद खूबसूरत फिल्म थी जिसमें देश के प्रगतिशील द्रस्टिकोंण और मानवीय भावनातमक उल्भावों को ख़ूबसूरती से पिरोया गया था | गुरुदत्त की फिल्मों में उनकी व्यतिगत सोच, दार्शनिक चिंतन और निजी जीवन का अक्स बहुत स्पष्ट दिखाई पड़ता है | यह माना जाता है की गुरुदत्त ये मात्र अपनी आधा दर्जन फिल्मों यथा प्यासा, कागज के फूल, साहब बीबी और गुलाम, मिस्टर एंड मिसेज ५५५, आर पार तथा बाजी से हिंदी सिनेमा को इतना सम्रद्ध कर दिया की बर्षों तक उसे दिशा शून्यता या भटकाव नहीं झेलना पड़ेगा | गुरुदत्त ने मानों अपने छोटे फ़िल्मी कैरियर में हिंदी सिनेमा की पूरी झोली भर दी | फार्मूला रोमांस, संगीत संवेदना, मार्मिकता दर्शन महत्वाकांक्षाएं संघर्ष जैसे जीवन के सारे तत्व उनकी फिल्मों में बिखरे मिलते है|

वे सदैव नए प्रयोग के आदी थे और दूसरे कलाकारों के अच्छे प्रयासों की दिल खोलकर सराहना करते थे | उन्होंने जीवन में जिस फिल्म की कामयाबी के लिए बहुत प्रार्थनाएँ कीं वह कोई उनकी फिल्म न होकर बी आर चोपड़ा की कानून थी | कानून बिना गानों की पहली फिल्म थी और गुरुदत्त इस प्रयोगधर्मिता की सफलता चाहते हैं |

१० अक्टूबर १९६४ को इस महान फिल्मकार का आसामायिक निधन हो गया उनके निधन के समय कई प्रोजेक्ट पर काम चल रहा था | प्रोफ़ेसर, राज गौरी बंगाली व् अंग्रेजी एक टुकुहावा बंगाली, स्नीज जैसी फिल्मों की शूटिंग चल रही थी कनीज देश की पहली रंगीन फिल्म बनने जा रही थी | बहारें फिर भी आएँगी, आत्माराम के द्वारा तथा लव एंड गाड के आसिफ एवं संजीव कुमार के सहयोग से पूरी की गयी | गुरुदत्त एक बहुत ही ईमानदार और स्वंम के सबसे बड़े आलोचक थे | वे एक ऐसी फिल्म को लेकर दर्शकों के सामने कभी नहीं जाना चाहते थे जिससे वे स्वंम बहुत ज्यादा संतुष्ट न हों | वे इस बात को लेकर बहुत चिंतित रहते थे कि हमारे देश में समय रहते प्रतिभा कि कद्र नहीं की जाती है | सेल्युलाइड के वार्षिक अंक में प्रकाशित अपने एक लेख में गुरुदत्त ने लिखा था कि गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर और सत्यजीत रे जैसी हस्तियों को भी देश में तभी सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती है जब उन्हें पशचिमी जगत द्वारा पुरस्कृत एवं प्रतिष्ठित किया गया | वे पशचिम के सर्टिफिकेट की मानसिकता से देश को उबारना चाहते थे | गुरदत्त कला के क्षेत्र को सम्रद्ध बनाना चाहते थे | उन्हें यह देखकर बहुत दुःख होता था कि इस देश में अतीत से ही कलाकार और निर्धनता का चोलीदामन का साथ रहा है | उनका मानना था कि ऐसे कलाकारों को टूटने से बचाना होगा जो अभावों के कारण उत्कृष्ट सृजन नहीं कर पा रहे हैं |

गुरुदत्त के साथ कैरियर शुरू करने वाले उनके परममित्र देव आनंद आज भी गुरुदत्त को बहुत याद करते हैं | वे मानते हैं कि वक्त ने हिंदी सिनेमा से उन्हें छीन कर बहुत बड़ा अन्याय किया | उन्हें सृजन और फिल्म निर्माण के लिए केवल एक दशक का छोटा सा समय ही मिल पाया | गुरुदत्त सही मायनों में ऊर्जा, आत्मविश्वास, सृजन, चिंतन और दर्शन के अदभुत व बिरले समन्वित गुणों से भरपूर फिल्मकार थे | गुरुदत्त के असामयिक निधन के बाद स्क्रीन में प्रकाशित देव आनंद की श्रद्दांजलि से ये शब्द मानों शास्वत प्रासंगिकता रखते हैं | 'गुरुदत्त एक स्रजनकर्ता थे, वे कैसे मर सकते हैं, वे हमेशा हमारे दिलों में जीवित हैं | एक महान कलाकार जो सच्चा और शुद्ध हैं वह कभी नष्ट नहीं हो सकता, वह अमर हैं .... गुरुदत्त सदैव-सदैव जीवित रहेंगे .... 'प्रख्यात संवाद, लेखक अबरार अलवी उन्हें उचित ही फिल्मों का 'हेमलेट' करार देते हैं |

पंकज कुमार सिंह
चित्र गूगल से साभार

Saturday, April 3, 2010

hasil kya hoga.........

दिल के बेहद करीब छोटे भाइयों ....हृदेश और पुष्पेन्द्र को समर्पित जिनोहने हाल में लिखने के लिए मुझे उकसाया


वक़्त से बढकर भी क्या कोई हो पाया है ,
रेत पकड़ने से भी हासिल क्या होगा ! !

दिल के दरवाजे पर तो पड़ा हुआ ताला है ,
रोज इबादत से भी हासिल क्या होगा ! !

दौलत की गठरी से भारी ये ज़मीर है ,
गद्दारी करने से हासिल क्या होगा ! !

इधर बेरुखी है तो उधर भी छाई खामोशी ,
ईमान बदलने से भी हासिल क्या होगा ! !

छोटा सा दिल है वो भी वीरान पडा है ,
दुनिया पा लेने से हासिल क्या होगा ! !

करीब खुदा के यही फकीरी तो लाई है ,
ग़ुरबत से लड़कर भी हासिल क्या होगा ! !

दुश्मन से भी ज्यादा खौफ़ सताता जिसका ,
ऐसी यारी से भी हासिल क्या होगा ! !

वक़्त की बेरहमी ने असर दिखाया है ,
अब नीम हकीमों से भी हासिल क्या होगा ! !

रोज़ टूटते हैं हर पल आंसू देते हैं ,
ख्वाब संजोने से भी हासिल क्या होगा ! !

अपने कर्मों से छुटकारा नामुमकिन है ,
छुरा घोंपने से भी हासिल क्या होगा ! !

अपने साए से भी कब पीछा छूटा है ,
रिश्ते ठुकराने से हासिल क्या होगा ! !

वक़्त से पहले नहीं यहाँ कुछ भी मिलता है ,
पैर पटकने से भी हासिल क्या होगा ! !

जिधर भी जाऊं एक खौफ़ सा छा जाता है ,
ऐसी शोहरत से भी हासिल क्या होगा ! !

सिक्कों जैसी चमक बसी उनकी आँखों में ,
दीवानेपन से भी हासिल क्या होगा ! !

आँचल में न दूध बचा है आँखों में न पानी ,
ऐसी औरत से भी हासिल क्या होगा ! !

हालात बदलने की ताकत लो अपने हाथों में ,
नेताओं की मजलिश से हासिल क्या होगा ! !

Thursday, April 1, 2010

Mere prabhu........

कहाँ मैं जा रहा हूँ.........


ज़िन्दगी के मायने हैं क्या ,मैं ये समझूंगा कैसे ,
कामयाबी में डूबता जा रहा हूँ !!


छंट जांएगे दौलत से ग़ुरबत के ये बादल ,
ये कैसी तालीम पाता जा रहा हूँ !!


बर्बाद हो के भी जो मैं कुछ सीख पाया ,
कैसे कहते हो मैं घाटे में रहा हूँ !!


वक़्त हाथों में ठहरता ही नहीं है ,
क्यों मैं मुठ्ठी बंद करता जा रहा हूँ !!


खुदा तो खुद मेरे अन्दर बसा है ,
क्यूँ मैं काशी और क़ाबा जा रहा हूँ !!


सच ने कुछ ऐसे बवंडर कर दिए हैं ,
कोरी अफवाहों में जीता जा रहा हूँ !!


मोहब्बत एक तमाशा बन गयी है ,
आग है और खेलता ही जा रहा हूँ !!


न जाने किस की सोहबत में नशा" सच" का लगा है ,
हर आदमी से दूर होता जा रहा हूँ !!


कहीं तो सुलझेंगी ये उलझने सब ,
मौत से पहले कहाँ मैं जा रहा हूँ !!


ज़िन्दगी तो पहले भी आसां नहीं थी ,
क्यूँ मैं अब बेसब्र होता जा रहा हूँ !!


खून के रिश्तों ने कुछ बाँधा है ऐसे ,
सोने की जंजीरों में जकड़ा जा रहा हूँ !!


कुछ छिन जाने की दहशत से मैं इतना डर गया हूँ ,
माँ के आँचल में सिमटता जा रहा हूँ !!


आप तो अपने ही थे फिर क्या हुआ जो ,
आपकी यादों से भी कतरा रहा हूँ !!


साथ किसके कोई मरता ही कहाँ है ,
क्यूँ कसमें झूठ खाता जा रहा हूँ !!


जो मुकद्दर में लिखा है, होता तय है ,
क्यूँ लकीरों से मैं लड़ता जा रहा हूँ !!

Tuesday, March 30, 2010

letter to all friends

thanx i m feeling great to being a part of social networking i m a social, administrative&spritual kind of persone .i want to see every body of the universe healthy, wealthy,spritual&moral.we have to make a good&satisfactory world.today in human life there are so many complications& stress.how we can peel off all this contradictions.friendship& sharing ideas could be a great way.so come on friends & take a first step on this way. may god bless to all of you.