कहाँ मैं जा रहा हूँ.........
ज़िन्दगी के मायने हैं क्या ,मैं ये समझूंगा कैसे ,
कामयाबी में डूबता जा रहा हूँ !!
छंट जांएगे दौलत से ग़ुरबत के ये बादल ,
ये कैसी तालीम पाता जा रहा हूँ !!
बर्बाद हो के भी जो मैं कुछ सीख पाया ,
कैसे कहते हो मैं घाटे में रहा हूँ !!
वक़्त हाथों में ठहरता ही नहीं है ,
क्यों मैं मुठ्ठी बंद करता जा रहा हूँ !!
खुदा तो खुद मेरे अन्दर बसा है ,
क्यूँ मैं काशी और क़ाबा जा रहा हूँ !!
सच ने कुछ ऐसे बवंडर कर दिए हैं ,
कोरी अफवाहों में जीता जा रहा हूँ !!
मोहब्बत एक तमाशा बन गयी है ,
आग है और खेलता ही जा रहा हूँ !!
न जाने किस की सोहबत में नशा" सच" का लगा है ,
हर आदमी से दूर होता जा रहा हूँ !!
कहीं तो सुलझेंगी ये उलझने सब ,
मौत से पहले कहाँ मैं जा रहा हूँ !!
ज़िन्दगी तो पहले भी आसां नहीं थी ,
क्यूँ मैं अब बेसब्र होता जा रहा हूँ !!
खून के रिश्तों ने कुछ बाँधा है ऐसे ,
सोने की जंजीरों में जकड़ा जा रहा हूँ !!
कुछ छिन जाने की दहशत से मैं इतना डर गया हूँ ,
माँ के आँचल में सिमटता जा रहा हूँ !!
आप तो अपने ही थे फिर क्या हुआ जो ,
आपकी यादों से भी कतरा रहा हूँ !!
साथ किसके कोई मरता ही कहाँ है ,
क्यूँ कसमें झूठ खाता जा रहा हूँ !!
जो मुकद्दर में लिखा है, होता तय है ,
क्यूँ लकीरों से मैं लड़ता जा रहा हूँ !!
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बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबेहतरीन रचना के साथ आगाज किया है हुजूर
चंद लाइनों में अपनी दिल की बात कह दी बिलकुल सच
लिखा आपने |
इतने अरसे के बाद भी वाही पुराने तेवर |
बहुत बहुत बधाइयाँ ..........................
बेहद खुबसूरत...दिल को छूने वाला दरवेशी कलाम सा लगा.
ReplyDeleteजो मुकद्दर में लिखा है, होता तय है ,
क्यूँ लकीरों से मैं लड़ता जा रहा हूँ !!
पंकज जी
ReplyDeleteपी.सिंह साहब ने आपके बारे में जैसा लिखा था
आप तो उस से कहीं बढ़कर निकले मान गए जनाब
आपकी लेखाकारी को | अबतक तो में सिर्फ सिंह साहब की
गजलों का मुरीद था पर अब आपको भी पढना पढ़ेगा |
खुदा तो खुद मेरे अन्दर बसा है ,
क्यूँ मैं काशी और क़ाबा जा रहा हूँ !!
सच का आइना...
छंट जांएगे दौलत से ग़ुरबत के ये बादल ,
ये कैसी तालीम पाता जा रहा हूँ !!
बहुत खूब
आपको आपकी पहली रचना के लिए मुबारकां